New Delhi: भारत में महिलाओं को गणित में कमजोर मानने की सोच काफी पुरानी है। लेकिन एक महिला ने अपनी प्रतिभा से इस घटिया सोच को बदल कर रख दिया। 4 नबम्बर 1929 को बंगलुरु में कन्नड़ परिवार में एक लड़की का जन्म हुआ और नाम रखा गया शकुन्तला। परिवार के बड़े-बुजुर्ग को हाथ की लकीरों को पढ़ना आता था, तो उन्होने नन्ही सी लड़की की हाथ की रेखाओं को देखकर बताया कि इस को भगवान का आशीर्वाद है, आगे चलकर यह बहुत नाम कमायेगी।
शकुन्तला के पिता एक सर्कस में काम करते थे। वह अपनी बेटी की प्रतीभा को पहचानने वाले सबसे पहले व्यक्ति थे। उनकी अंको को याद रखने की याददाश्त कमाल की थी। चार साल की उम्र में शकुन्तला अपने मुहल्ले में इसी प्रतिभा की वजह से जानी जाने लगी। चार साल की उम्र में ही यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूर में एक बड़े कार्यक्रम में हिस्सा लिया और यही उनकी देश-विदेश में गणित के ज्ञान के प्रसार की पहली सीढ़ी बना।
एक न्यूज संस्थान को दिये इंटरव्यब में शकुन्तला देवी ने बताया था कि कभी स्कूल नहीं गई। अंग्रेजी, तमिल, हिन्दी भाषा अभ्यास करके सीखी गई है।
अमरीका में साल 1977 में शकुंतला देवी ने कंप्यूटर से मुक़ाबला किया। 188132517 का घनमूल बता कर शकुंतला देवी ने जीत हासिल की। उन्होंने 13 अंक वाले दो नंबरों का गुणन केवल 28 सेकंड में बता कर 1982 में अपना नाम गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में दर्ज करा लिया।
ह्यूमन कंप्यूटर नाम से मशहूर शकुंतला देवी गणित के अलावा कुकरी पर भी किताबें लिख चुकी हैं। उन्होंने वर्ष 1977 में दी वर्ल्ड ऑफ होमोसेक्शुअल्स किताब लिखी जिसे भारत में समलैंगिकता पर पहली किताब भी कहा जाता है।
ऐसी प्रतिभावान भारतीय गणितिज्ञ, मानव कम्प्यूटर और लेखिका शकुन्तला देवी ने 21 अप्रैल 2013 को 83 वर्ष की आयु में बंगलुरु के अस्पताल में आखिरी सांस ली।
अब इस महान हस्ती की कहानी को फिल्मी परदे पर प्रस्तुत किया जा रहा है। 31 जुलाई को प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही फिल्म शंकुन्तला देवी में विद्या बालन ने इसमें मुख्य किरदार निभाया है।
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